भूल सुधार करते हुये 'बिस्मिल चरित'का एक अंश श्रद्धांजलि स्वरूप भेंट कर रहा हूं-----
मित्रों
२७ फरवरी को मेरे छोटे बेटे का जन्मदिन था।इसके अतिरिक्त मेरे कार्यालय की दलित
शक्तियां कुचक्रों में लिप्त हैं।उनसे संघर्ष रत मैं अमरशहीद चंद्रशेखर आज़ाद के
बलिदान दिवस को भूल ही गया था।अपनी भूल सुधार करते हुये 'बिस्मिल चरित'का
एक अंश श्रद्धांजलि स्वरूप भेंट कर रहा हूं-----
काकोरी एक्शन योजना
द्वारिकापुर
की घटना ने,क्रांति कर्म दुर्घटना ने
घाव किये मन
पर भारी,पर,बिस्मिल थे आभारी
छूट गये थे
कलुषित कर्म ,किंतु हवा थी बेहद गर्म
साधन कहां से
लायेंगे?दल को कैसे चलायेंगे
आया तभी
उन्हें संदेश,'साथी' बन सकता है,विदेश
ज़र्मन
पिस्तौलें बंदूक,और बमों के कुछ संदूक
ले ज़हाज़ है
रस्ते में,मिल सकते हैं सस्ते में
कुछ भी करो
दंद या फंद,मुद्रा का पर करो प्रबंध
पाना खेप
ज़रूरी है,पैसों की मज़बूरी है
'सेंट्रल-वर्किंग-कमेटी'में,एच०आर०ए०
की मीटिंग में
वाद-विवाद
लगा होने,परिसंवाद लगा होने
धन को कैसे
जुटायें हम ,अस्त्र किस तरह पायें हम
सबसे पूछा
कैसे हो?ऐसे हो या वैसे हो
धन तो हमें
जुटाना है,हथियारों को पाना है
'एक्शन"
पर तो रोक है,नही हमें भी शौक है
पर,लडना
है गोरों से,मक्कारों से चोरों से
इनको ही अब
लूटेंगे,इनके ताले टूटेंगे
टूटेंगे
सरकारी ही,हम इनके अधिकारी ही
भारत भू को
कूट कर,भोली जनता लूटकर
गोरे रकम
जुटाते हैं,और कहां से पाते हैं
लूटेंगे
राजस्व हम,करेंगे यह अवश्य हम
हो सरकार पे 'एक्शन',चाहे
जो हो रिएक्शन
सुनकर सभा का
यह प्रस्ताव,आया बिस्मिल को भी ताव
बोले--"लूटेंगे
हम रेल,गोरे अब देखेंगे खेल'
बोले तब अशफाक यह ,ठीक
नहीं प्रस्ताव यह
शक्ति हमारी सीमित है,शासन-सत्ता-
असीमित है
क्रोध से झपटेगी सरकार झेल ना
पायेंगे हम वार
ताकत हमें जुटाने दो,उचित
समय को आने दो
बीच में भभक
उठे आज़ाद--"व्यर्थ ना वक्त करो बर्बाद
क्रांति-क्रांति
चिल्लाते हैं,भीख
मांगकर खाते हैं
अगर यही है
क्रांत सुकर्म ,मुझको
खुद पर आती शर्म
सभा रह गयी
सारी सन्न ,लेकिन
बिस्मिल हुये प्रसन्न
"क्विक
सिल्वर कुछ धैर्य धरो ,अनुशासन
को यों ना हरो
बना योजना
बढना है,
अंगरेज़ों से लडना है
साथी नहीं
कोई कमज़ोर,सबमें
साहस है पुरज़ोर
चलो तुम्हीं
बतलाओ ना,उचित
योजना लाओ ना
रेल को तो हम
लूटेंगे,नहीं
राह में छूटेंगे
लेकिन कैसे
करना है?ब्रिटश
दर्प को हरना है
अपनी बात
बताओ भी,रौ
में अपनी आओ भी"
"जहां
भी आप बताओगे मुझे खडा ही पाओगे
गार्ड
ड्राइवर टी टी को हर अंगरेज़ी सीटी को
कर देंगे उस
दिन खामोश,सारा
ज़ग देखेगा रोष"
कडक उठे थे
रामप्रसाद,"नहीं
प्रतिग्या तुमको याद
व्यर्थ में
खून बहाओगे,भारत
मां को लजाओगे?
सिर्फ छीनना
है सम्मान,नहीं
किसी की लेनी जान,
यदि अनुशासन
तोडोगे,अपनी
ज़िद ना छोडोगे
छोडूगा
दायित्व मैं सब दायित्व,क्या
है एक्शन का औचित्य
बोले तभी मुकुंदी लाल,बिगडी
सारी बात संभाल
क्षोभ रोष सारे छोडो,बातब
यहां से अब मोडो
पंडितजी ही नेता हैं,शासन
दर्प विजेता हैं
जैसा ये बतलायेंगे,हमको
वैसा पायेंगे
लिखेंगे हम नूतन इतिहास,पंडितजी
कर लो विश्वास
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सात अगस्त की शाम को ,बदल
के अपने नाम को
पहुंचेंगे स्टेशन को,क्विक
करेंगे एक्शन को
भलीभांति सब करना है,जोश
देश में भरना है
नहीं कहीं हो गद्दारी,मेरी
है ज़िम्मेदारी
सब पर है मुझको विश्वास पर धोखे
का कुछ आभास
लेने देता न मुझको चैन,बीत
चुकी है आधी रैन
सफल एक्शन हो जाये,ब्रिटिश-दर्प
ये खो जाये
कस कर हिंद करे हुंकार ,लंदन
तक गूंजे झंकार
इस छोटी सी अर्जी पर ,मालिक
तेरी मर्जी पर
निर्भर है भार का भाग,धधक
रही है मन में आग
आ जाये कुछ देर को नींद, शीघ्र
मनायेंगे हम ईद
जैसी प्रभु की इच्छा हो,शायद
यह भी परीक्षा हो
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------अरविंद पथिक
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