रंगीनियां हैं हर तरफ अबीरो-गुलाल की

रंगीनियां हैं हर तरफ अबीरो-गुलाल की



मित्रों पिछले कई वर्षों से आकाशवाणी की राष्ट्रीय प्रसारण सेवा द्वारा आयोजित होलि कवि-सम्मेलन में जाता रहा हूं पर शायद इस बार आकाशवाणी की राष्ट्रीय प्रसारण सेवा  इसे आयोजित नही कर रही  या फिर नये निदेशक लक्ष्मी शंकर वाजपेई चूंकि स्वयं कवि हैं और मैं उनकी मंडली का सदस्य नहीं हूं सो पत्ता कट गया,?सच क्या है ? बहरहाल होली की कविता तो किसी ना किसी को सुनानी ही है तो आप से बेहतर कौन,लीजिये आप लोगों को राष्ट्रीय नहीं अंतर्राष्ट्रीय समझते हुये कविता दे रहा हूं-----



रंगीनियां हैं हर तरफ अबीरो-गुलाल की
फागुन बह रही है हवा भी कमाल की
मस्ती मे गा रही है गोरी भी चाल की
हर हुस्न परी हो गयी है सोलह साल की

बंदिश नही है कोई  ना ही सवाल है
होली का मच रहा घर-घर धमाल है

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