जाने कैसा-कैसा होने लगा हिया ?
जाने
कैसा-कैसा होने लगा हिया ?
जाने
कैसा-कैसा होने लगा हिया ?
नंबर डायल
किये
और फिर फोन
रख दिया
जाने कौन
उठाये?
कैसे सवाल
करे ?
फाल्स काल पर
जाने कैसे
भाव धरे?
प्रत्यंचा को
चढा पुनः
फिर धनुष धर
दिया,
"बीत
गई सो बात गई
कह देने में
क्या है
भीड के बीच
में तन्हा
रहते रहने में क्या है"
कह सकता है
वही
दर्द को
जिसने नही जिया
जाने
कैसा-कैसा होने लगा हिया ?
सबके मन की
करते -करते
खुद को भूल
गये
दायित्वों की
शूली पर हम
हंसकर झूल
गये
सोंच रहा हूं
आखिर इतने दिन
मैं कैसे
जिया ?
जाने कैसा-कैसा होने लगा हिया ?
जब भी कोई खुशी मिली
तो सोचा तुम होते
देख मेरे संघर्ष
फूटकर तुम सचमुच रोते
जब तक नहीं पडाव आ गया
हमने दम ना लिया
जाने
कैसा-कैसा होने लगा हिया ?
प्याला होठों तक आता है
रह जाती है दूरी
जीवन जीना कभी तो
हो जाता मज़बूरी
हमने किंतु कभी मज़बूरी
में कुछ नहीं किया
और फिर फोन रख दिया
अरविंद पथिक
टिप्पणियाँ