कवि सम्मेलन के मंचों पर अक्सर मैं समस्त कलमकारों(लेखकों,कवियों,पत्रकारों,मसिजीवियों)को एक मुक्तक समर्पित करता हूं,आज इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों को भी कलमकार मानते हुये ये मुक्तक दे रहा हूं--
सिर्फ नेता ही नहीं कुछ और भी मक्कार हैं
जो कलम को बेंचते हैं ,वे भी तो मक्कार हैं
पूरी पीढी है नपुंसक रक्त में गर्मी नहीं
इसलिये करगिल यहां औ यहां कंधार हैं

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