याद रहे आज बिस्मिल जयंती है पर बधाई नहीं दूंगा-------।
रात के लगभग डेढ बजे यह पोस्ट लिखते हुये आज बिस्मिल जयंती की बधाई देने का बिल्कुल मन नही है।बिस्मिल जी ने अपनी आत्मकथा में बार-बार समाज की कायरता का ,धोखों और षडयंत्रों का ज़िक्र किया है उस काल की तुलना करता हूं तो लगता है कुछ भी तो नही बदला।अमरशहीद अशफाक उल्ला खां की मज़ार के लिये चंदा गणेश शंकर विद्यार्थी को करना पडता है पर आज जब उनके कथित पौत्र उनके नाम पर देश भर में सम्मान लेते हैं तब भी उन्हें अपने दादा की मज़ार घूमते सुअर और कुत्ते दिखाई नहीं पडते।प०रामप्रसाद बिस्मिल का मकान जिसे स्मारक होना चाहिये था और कई वर्ष पूर्व तत्कालीन श्रम मंत्री साहिब सिंह वर्मा ने उस मकान को खरीद कर भव्य स्मारक बनवाने का वादा हम कुछ मित्रों से किया था पर अपना वादा पूरा करने से पूर्व ही वे दिवंगत हो गये।
शाहजहांपुर में पं० रामप्रसाद बिस्मिल के नाम पर अस्पताल से लेकर कालोनी और शहीद स्मारक भी है पर भव्य स्मारक बनवा के वोट की राजनीति करने वाले क्या कभी उन ज़िंदा स्मारकों की भी सुध लेंगे जो आज थाने और पुलिस के चक्कर काट रहे हैं।
शाहजहांपुर के वे कवि और पत्रकार क्यों खामोश हैं जो कही भी जाते हैं तो खुद को शहीदों की नगरी से आये बताकर तालियां बजवाते नहीं अघाते।शायद शाहजहांपुर के लोगो को लक्ष्य करके ही बिस्मिल जी ने लिखा था--
तलवार खूं में रंग लो अरमान रह ना जाये
बिस्मिल के सर पे कोई अहसान रह ना जाये।
मित्रों शहीदों को लेकर पहले जब भी मैने को पोस्ट या लेख लिखा तो एक आध प्रतिक्रिया ऐसी भी आई है जैसे मैं शहीदों का स्वयंभू प्रवक्ता बन गया हूं।एक मित्र ने तो एक बार यह भी लिख दिया कि आप भी इसी व्यवस्था में हैं।
तो आप से मुझे यही कहना है कि आप के सारे इल्ज़ाम सर -माथे पर कुछ करो कम से कम अपनी नज़रों से गिरने से बचने के लिये ही सही ।राजनीति से कुछ उम्मीद नहीं कलम वालों तुम्ही कुछ करो ।याद रहे आज बिस्मिल जयंती है पर बधाई नहीं दूंगा-------।
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