सौ करोड भारत की जनता कहती है
जिस दिन फारुक अब्दुल्ला ने ये बयान दिया था की अफज़ल फँसी देने से घाटी के हालत बिगड़ सकते हैं ये कविता लिखी गयी .अरुंधती राय जैसी महिलाये जिस तरह जंतर -मंतर पर चिल्ल पो करती रहती हैं उसकी अनुगूंज भी इस कविता में मिलेंगी --


आज स्वर्ग मे तडपे होंगे फिर शेखर ,


आज स्वर्ग मे तडपे होंगे फिर शेखर ,
अशफाक
झुकाये शीश मौन बैठे होंगे
बिस्मिल
जी ने क्या क्या न आज सोचा होगा?
लहरी,रोशन ने
कैसे-कैसे सवाल पूंछे होंगे?
क्यों
चूमा फांसी का फंदा हमने
असैंबली
मे बम नाहक ही फोडे थे
गुस्से
में मुठ्ठियां भींच कह रहे,भगत
ऐसी
आज़ादी के लिए प्राण ना छोडे थे,
संसद
पर हमला करने वालों को
फांसी
देने मे इतनी घबराहट क्यों?
क्यों राजनीति के गलियारे हैं डरे हुए
घाटी
मे बिला वजह इतनी चिल्लाहट क्यों?
क्या
चंद वेश्या जंतर -मंतर पर
चीख
पुकार मचा कर धमका जायेंगी?
क्या
ओछी-राजनीति के हाथों अपमानित हो
रूहें
अमर शहीदों की फिर अश्रु बहायंगी?
संसद
की खातिर प्राण गवाने वालों ने
हतप्रभ
हो जब धरती पर झांका होगा
सोचा
होगा बेकार ही प्राण गंवाये थे
हम भावुक थे ,मन कच्चा था
जैसे
पाखंडी ,मक्कार आज है कर्णधार
उनसे
तो अंग्रेजी राज़ ही अच्छा था
जहां अफजलों को बिरियानी मिलती
हो
शेखर
,बिस्मिल की मां भूखी ही सो जाये
उस
देस की संसद पर एटम बम बरसे
कल
होनी हो जो प्रलय आज ही होजाये
क्या
भारत की धरती पौरूष हीन हुई
क्या
भारत सिर्फ अफज़लों का मक्कारों का
सौ
करोड जनता भारत की दे ज़बाव
क्या
भारत सिर्फ कमीनों का मक्कारों
का?
ये
धरती राणा शिवा ,भगत
की धरती है
इस
धरती ने अब्दुलहमीद उपजाये हैं
इस
धरती ने देखे हैं कई महाभारत
-इस धरती पर भगवान मनुज बन आये हैं
कैसे
मानूं,इस धरती पर साहस शौर्य नहीं
मुफ्ती
,गुलाम,फारूखो का ही बसेरा है
भारत
का सौभाग्य सूर्य हो चुका अस्त
इसकी किस्मत में छाया घोर अंधेरा
है
नहीं किसी भी तरह नहीं मैं मानूंगा
भारत
की धरती साहस, शौर्य से हीन नही
भारतमाता
लाचार सिसकती रहे,ठगे से देखें हम
हम इतने नालायक ,कायर ,और
कमीन नहीं
फांसी पर लटकेंगे अफज़ल पर, पहले
चौराहों पर लटकायेंगे फारूखों को,
जूते
मारेंगे मुफ्ती ,के और गुलामों के
गलियों-गलियों
में भूनेंगे गद्दारों को
कवि
नहीं सौ करोड भारत की जनता कहती
है
गद्दार
एक भी बचकर ना जा पायेगा
भारत
मे रहने चाहत रखने वालों
वंदेमातरम
आज तुम्हें गाना होगा
अरविंद
पथिक
टिप्पणियाँ