हम तो मर जाते तुम्हारी एक ही मुस्कान से
कई दिन से निराशा-हताशा की बाते लिखकर थकने लगा हूँ ,तो लीजिये खालिस अरविन्द पथिक स्टाइल की ताज़ा तरीन गज़ल ------------
लौट कर आया है
जब से यार इंगलिश्तान से
हो गये उस रोज से हम फालतू सामान से
झाडू,बरतन,बेलनों का
कत्ल नाहक ही किया
हम तो मर जाते तुम्हारी एक ही मुस्कान से
हो गये हैं हुस्न वाले भी सयाने आजकल
अब नहीं पटता है कोई रूप के गुणगान से
इन तरक्की के दिनों कुछ भी आसां ना रहा
हो गया है सबसे मुश्किल जीना अब सम्मान से
यों पथिक भी ठीक ही है ज्वाय को,इंज्वाय को
मगर शादी तो करेंगे लल्लू से धनवान से
टिप्पणियाँ