सृजन पथ: देशभक्ति के यक्ष प्रश्न: देशभक्ति के यक्ष प्रश्न आज भारत देश अतिवाद के ऐसे दौर से गुज़र रहा है जिसका खामियाजा उसे निकट भविष्य में भुगतना होगा।आधुनिक तकनीक और व...
संदर्भ हिंदी दिवस --------------------------- हिंदी के विकास में विदेशी विद्वानों का योगदान -------------------------------------अरविन्द पथिक जिस ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी मैकाले ने क्लर्क बनाने के नाम पर अंग्रेजी जानने की अनिवार्यता शुरू की थी- बहुत लोगों को जानकर हैरत हो सकती है कि उसी सरकार ने 1881 में निर्णय कर लिया था कि भारतीय सिविल सेवा में वही अफसर चुने जाएंगे , जिन्हें हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं की समझ है। वैसे हिंदी का प्रशासनिक महत्व अंग्रेज सरकार ने सन 1800 से पहले ही समझना शुरू कर दिया था। दिलचस्प बात ये है कि इसके कारण कतिपय अंग्रेज विद्वान ही थे। कई लोगों को यह जानकार आश्चर्य होगा कि हिंदी का पहला व्याकरण डच भाषा में 1698 में लिखा गया था। इसे हॉलैड निवासी जॉन जीशुआ कैटलर ने हिंदुस्तानी भाषा नाम से लिखा थ...
शाह साहब की मौत की खबर दिल्ली में आग की तरह फैली पर दिल्ली तो पिछले पचास बरस से बदअमनी की आग में झुलस रही थी .शाह साहब ने अपनी जिंदगी में दस बादशाहों को तख्त से तख्ते तक का सफ़र करते देखा था .दिल्ली के तख्त पर कब्जा कर बाबर ने जिस मुगल वंश की शुरुआत लगभग डेढ़ सौ बरस पहले की थी ,के तख्त पर अब शाह आलम काबिज़ था .आलमगीर की मौत के बाद दिल्ली के तख्त पर जिस तरह से एक के बाद एक निकम्मे और नाकारा बादशाह बैठे थे उनसे हिंदुस्तान को पूरी तौर पर इस्लामी मुल्क बनाने का ख्वाब अपनी आँखों के सामने टूटते बिखरते देख शाह साहब ने बहादुरशाह से लेकर मुहम्मद शाह तक हर बादशाह को हिंदुस्तान में मुकम्मल तौर पर शरिया नाफ़िज करने के लिए तैयार किया था पर हर बार इन निकम्मे शहंशाहों से उन्हें मायूसी ही हासिल हुयी थी .और जब तख्त की हिफाजत के लिए इन बेगैरत और बदजात बादशाहों ने कभी मराठों ,कभी जाटों तो कभी राजपूतों के आगे गिडगिडाना शुरू कर दिया तो शाह साहब को यकीन हो गया कि अब बाबर की इस नस्ल में अब इतनी कुव्वत नहीं बची ...
-अरविंद पथिक 1858 की प्रतीकात्मक हिन्दू – मुस्लिम एकता की धज्जियां सबसे पहले जिस व्यक्ति ने उड़ाई वह था सैयद अहमद खान जिसे अंग्रेजों ने सर की उपाधि से उसके इस भारत और भारतीयों विरोधी कार्य के लिए सम्मानित किया था . सर सैय्यद के पूर्वज मुगल दरबार में उच्च पदों पर कार्य करते थे . सर सैय्यद भी 1847 में ब्रिटिश सरकार की सेवा में आये . वह 1857 में तत्कालीन बरेली जिले की बिजनौर तहसील में सदर अमीन जिसका कार्य मुंसिफ मजिस्ट्रेट स्तर का होता था के पद पर तैनात थे . जब बिजनौर से अंग्रेज भाग गये तो सर सैय्यद ने बखूबी अंग्रेजों के प्रशासन को क्रांति के उस काल में भी चलाए रखा . सर सैयद ने स्थानीय मुस्लिम क्रांतिकारियों को समझाया कि अंग्रेजों का शासन मुसलमानों के हित में है . क्रांति के पूरी तरह समा...
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