काश ऐसा ना होता------------------।


शुभ प्रभात,कल रक्षाबंधन पर व्यस्त रहा ।कई बरसों बाद बहन आयी तो मेरी कलाई पर भी इस बार राखी सज गई।सबके अपने संघर्ष  की आंच में हम कब मांस से पत्थर हो जाते हैं पता ही नहीं चलता।देर से वापस आये घूम घाम के बहनोई साब अन्ना के अनशन स्थल पर जाने की ज़िद कर रहे थे।मेरा भी मन था पर त्योहार का दिन बहन का बार-बार भावुक हो जाना बच्चों के लिये कभी ये खरीदना कभी वो।सारा दिन इसी में निकल गया।तय किया कल कार्यालय से छुट्टी लेके पूरा दिन अन्ना के साथ -पास बैठेंगे।टी वी खोला तो सुना अन्ना कह रहे हैं अब राजनीतिक विकल्प --अनशन समाप्त कल।मुझे बहुत आश्चर्य नहीं हुआ  क्योंकि मैं कोई नये डेवलेपमेंट की अपेक्षा कर ही रहा था--।पर सीधे अनशन वापसी का निर्णय ---इसकी आशा मुझे भी नहीं थी।
मेरे बहनोई साब तो अन्ना को गालियां देते हुये--सोने चले गये और मुझे देर तक नींद नहीं आयी।मेरी चिंता का विषय यह था कि अन्ना ने जिन परिस्थितियों में अनशन वापस लिया वह उनके परिपक्व आंदोलनकारी होने की पुष्टि करता है पर जिस तर से वापस लिया उसके लिये इस देश के युवा को संतुष्ट कर पायेंगे।पिछले दिनों मेरी बहुत से मित्रों से बात हुई वे बडे आश्वस्त थे कि ये सफल होगा।एक मित्र ने फेसबुक पर लिखा भी कि यदि अन्ना ने राजनीति के लिये आंदोलन को धोखा दिया तो ना तो स्वयं कभी ऐसे आंदोलन में शामिल होऊंगा और ना ही अपने किसी मित्र को होने दूंगा----------------ऐसे लोगों के लिये क्या सोचा अन्ना?
मुझे अयोध्या आंदोलन के दिन याद आते हैं जब कारसेवकों को मंदिर बनाने के लिये बुलाया जाता था और फिर नदी की रेत निकालने के काम में लगा दिया जाता था।कई बार छले जाने के बाद ६ दिसंबर १९९२ को जो हुआ उसने मंदिर निर्माण के प्रश्न और आंदोलन दोनो को अप्रासंगिक कर दिया।क्या ऐसे ही किसी अंत की ओर बढ रही है ये आंदोलन।एक बार फिर युवा छला गया।देश के लिये प्राण देने का साहस किसी आंदोलनकारी ने नही दिखाया।यद्यपि मुझे कोई नैतिक हक नहीं मैं ये प्रश्न उठाऊं क्योंकि मैने भी कोई बलिदान नहीं दिया ।पर उन लोगों को यह हक है जो सारे देश में भूखे-प्यासे बैठे टकटकी लगाये किसी क्रांतिकारी निर्णय के आने की 
उम्मीद कर रहे थे-----------------------।चर्चा तो यह भी है कि अन्ना अनशन को क्रमवार करने पर जोर दे रहे थे यानी अरविंद केजरीवाल--आदि का अनशन तुडवाकर उनकी जगह कुमार विश्वास,प्रशांत भूषण और किरन बेदी आदि को अब अनशन पर बैठना चाहिये--पर ये लोग तैयार नहीं हुये--ऐसे में क्या करते अन्ना?अन्ना के पार्टी बनाने के निर्णय से मैं सहमत नहीं हूं क्योंकि इससे केवल लालू,मुलायम और मायावती को फायदा होगा--और  दो साल बाद कोई भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बात करने को तैयार भी नहीं होगा---------------------------------।काश ऐसा ना होता------------------।

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