आपका व्यक्तित्व है तो सभी को आपसे खतरा है।
कई दिन से प्रमोशन में आरक्षण को लेकर बहस चल रही है।अटार्नी
जनरल ने जिस संविधान संशोधन का सुझाव दिया है उसके अनुसार संविधान के अनुच्छेद
१६(४) तथा ३३५ 'पर्याप्त प्रतिनिधित्व'तथा 'प्रशासन की
कार्यक्षमता बनाए रखने 'शब्द को हटाया जाना।
इस संविधान संशोधन के पश्चात एक ओर तो किसी भी सीमा तक आरक्षण
को बढाया जाना संभव होगा वहीं दूसरी ओर कुशल प्रशासन की ज़बावदेही समाप्त हो
जायेगी।सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय ५० प्रतिशत की सीमा रेखा और क्रीमी लेयर का
सिद्धांत भी समाप्त हो जायेगा।
दरअसल व्यवहार में तो ये सब कुछ बहुत पहले ही समाप्त हो चुका
है बस सैद्धांतिक तौर पर जो शर्म है या सुप्रीम कोर्ट की बंदिश है वह भी समाप्त
करने की तैयारी है।कोयला आबंटन और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के शोरगुल के बीच
ध्वनिमत से इस संशोधन का पारित हो जाना तय है क्योंकि जो पार्टियां इसका विरोध कर
रही हैं उनका विरोध सैद्धांतिक नहीं अपितु अपने वोट बैंक को लाभ दिलवाने के लिये
है ।उसका तरीका तमाम पिछडे वर्ग को आरक्षण की परिधी में लाना है।
यों भी व्यवहार में उच्च पदों पर अपने वर्ग के अधीकारियों की
नियुक्ति कर एक अघोषित आरक्षण पहले से ही लागू है।उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज
पार्टी के शासन में हर चौकी इंचार्ज तक दलित वर्ग का होता था तो आज समाजवादी
पार्टी की सरकार में यादव यया मुस्लिम वर्ग से है कमोवेश यही स्थित सारे देश की
है।कुछ टाप के आई० ए० एस० या आई०पी०एस० जो कमा के दे सकें और मुसीबत में फसने पर
सारा इल्जाम अपने सर ले सकें सामान्य वर्ग के ऐसे दो चार अफसरों को साथ रखकर सरकार
को ऐसा चेहरा देने की कोशिश की जाती है मानों सामान्य वर्ग से आने वाले ये लोग ही
सारी बुराइयों के ज़िम्मेदार हैं।जबकि वास्तविक सत्ता थानेदार और चौकी इंचार्ज के
हाथों मे होती है और उसकी पोस्टिंग किसी एस०पी० डी एम द्वारा नहीं विभागीय मंत्री
द्वारा होती है ये आज की प्रशासनिक सच्चाई है।मंत्री जी से पोस्टिंग लाने वाले
सिपाही तक हटाने का दम किसी एस० पी० में नहीं।
राजनीति में भी अयोग्य लोगों का बोलबाला है उदाहरण के लिये
मनमोहन सिंह इसलिये देश के प्रधानमंत्री है क्योंकि वे सोनिया गांधी के वफादार
हैं।अखिलेश यादव इसलिये मुख्यमंत्री हैं क्योंकि वे मुलायम सिंह के बेटे
हैं।रमनसिंह इसलिये मुख्यमंत्री हैं कि उनका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं।कुल मिलाकर
व्यक्तित्व हीनता इस युग का सबसे बडा गुण है।क्योंकि आपका व्यक्तित्व है तो सभी को
आपसे खतरा है।निष्ठा जिसका सीधा मतलब वयक्ति विशेष की चापलूसी है वही योग्यता
है।निकट इतिहास में ऐसे कई देवेगौडा और रामप्रकाश गुप्ता से हमारा वास्ता पड चुका
है जिनकी एक मात्र योग्यता उनका अयोग्य और चापलूस होना था।
इस चापलूसी मार्का निष्ठा को त्यागने की कोशिश जिस किसी ने की
उसने कीमत चुकाई है याद कीजिये हमारे आज के महामहिम ने एक बार ऐसी धृष्टता की थी
उसका परिमार्जन वे कितने दिन में कर पाये।स्वाभिमान की रीढ योग्यता की छेनी हथौडी
लिये कलाकारों के हाथ तो शाहजहां ने भी काटे थे आज कौन सी नयी बात है?
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--------------- अरविंद पथिक
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