-'मां तुझे सलाम'


यों तो लेखन से जुडे होने के कारण  रोजान तमाम तरह की पुस्तकों से गुजरना होता ही है ,इसी क्रम में क्वालिटी पब्लिशिंग कंपनी ,भोपाल से प्रकाशित 'मां तुझे सलाम'संग्रह को देखने का सौभाग्य मिला।'खंडवा'मध्यप्रदेश के उत्साही लेखक आलोक सेठी द्वारा विश्व भर की चुनिंदा मां ओं पर आधारित गीत गज़ल,संस्मरण,प्रेरक-प्रसंग कहानी संस्मरण आदि का एक ऐसा अनूठा संग्रह जो अपने मुख पृष्ठ से ही आकर्षित कर लेता है।संग्रह के फ्लैप पर कला समीक्षक संजय पटेल लिखते हैं---------"----------मां तुझे सलाम आलोक सेठी का सबसे ज़्यादा वंदनीय और सराहनीय सुकर्म है।ज़माने भर के कवियों और शायरों को एक दस्तावेज की शक्ल में उन्होंने एक जगह इकट्टा कर बडा पुण्य कमा लिया है----।"
संजय पटेल के इस कथन में तब रंच मात्र भी अतिशयोक्ति नही नज़र आती जब पाठक इस अद्भुत पुस्तक को पढना प्रारंभ करता है।अमर शहीद पं० रामप्रसाद बिस्मिल की मां मूलमती देवी से लेकर क्रिकेटर युवराज सिंह तक की मां के प्रेरणा प्रसंगों को जिस तरह से लेखक ने जीवंतता से अपनी कलम के माध्यम से उकेरा है वह सचमुच सराहनीय है।व्यापार के गुणा-भाग के बीच भी मां को किस तरह से जिया जा सकता है यह बखूवी आलोक सेठी ने कर दिखाया 
है ।यों तो उनका ये संग्रह ---'मां तुझे सलाम'उनकी पुस्तक 'तुरपाई---उधडते रिश्तों की' के प्रथम भाग का परिवर्तित एवं परिवर्धित संस्करण है,पर यह भाग स्वयं में संपूर्ण पुस्तक है और विश्व की समस्त माताओं को एक विनम्र श्रद्धांजलि है।इसमें यदि आलोक श्रीवास्तव के मां के लिये कहे गये बेहतरीन अशआर--
तेरे एहसास की खुशबू हमेशा ताजा रहती है,
तेरी रहमत की बारिश से मुरादें भीग जाती हैं।
शामिल हैं तो दूसरी ओर मुनव्वर राना के शेर भी उसी खूबसूरती से पिरोये गये हैं---
घेर लेने को मुझे जब भी बलायें आ गयीं 
ढाल बनकर सामने मां की दुआएं आ गयीं।
मदन मोहन समर के दोहे--
मां मेरी रामायण,गीता वेद पुरान 
मां दर्शन अध्यात्म मां,मां ही है विज्ञान।
 है तो राधा शाक्य से लेकर अशोक अंजुम तक जिस किसी ने भी मां पर कुछ भी उल्लेखनीय कहा है ,को पूरी श्रद्धा और संदर्भ के साथ प्रस्तुत किया है।
आज जबकि मंचीय हिंदी कविता ने चौर्य परंपरा के नये प्रतिमान गढ लिये हैं ऐसे में आलोक सेठी हर रचनाकार की पंक्ति को पूरे संदर्भ के साथ उदधृत कर भीड से अलग विनम्र और सौम्य नज़र आते हैं।
पीताभा लिये १७५ पृष्ठों मे समाहित ये संग्रह नयनाभिराम,संग्रहणीय और पठनीय है।शोधोत्सुक संदर्भों में भी यह संग्रह चर्चित होगा ऐसा मेरा विश्वास है।
अरविंद पथिक
४बी--१०४८
वसुंधरा,गाज़ियाबाद उ०प्र०
२०१०१२

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