व्यस्तता में भी मगर तुम ,खत हमें लिखती रहो
तुम अगर हो व्यस्त तो फिर व्यस्त ही दिखती रहो
व्यस्तता में भी मगर तुम ,खत हमें लिखती रहो
बात लिख देने में है जो,कहने में होती नहीं
पीर मन की तो ज़ुबां से व्यक्त ही होती नहीं
भले दिल में दर्द हो पर यों ही खुश दिखती रहो
व्यस्तता में भी मगर तुम ,खत हमें लिखती रहो
लिखने-पढने का चलन माना पुराना हो चला
शब्द-रस-विन्यास का ज़ादू भी है अब खो चला
वक्त से लम्हे चुरा स्क्रीन पर दिखती रहो
मेरे मैसेज बाक्स में तुम कुछ ना कुछ लिखती रहो
प्यार फुरसत के समय में तो कभी होता नहीं
प्यार से बढ व्यस्तता-कारण कोई होता नहीं
नित-नये सौ-सौ बहानों की कला सिखती रहो
मेल-मेसैज-पर्चियां जो मन करे लिखती रहो
ये तो तय है मुंहज़बानी कह कभी पाते नहीं
प्यार के अल्फाज़ होठों तक यों ही आते नहीं
बंद पलकों से खुली तक तुम ही तुम दिखती रहो
ज़िंदगी रसमय करे संदेश वे लिखती रहो
तुम अगर हो व्यस्त तो फिर व्यस्त ही दिखती रहो
व्यस्तता में भी मगर तुम ,खत हमें लिखती रहो
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