'सोशल मीडिया'सूचना और आत्मप्रचार का माध्यम है



पिछले दिनो एक चैनल ने 'सोशल मीडिया' की उपयोगिता और प्रासंगिकता पर बहस करायी और जैसा कि इन चैनलों की बहस में होता है कि कुछ लोग मुद्दे के पक्ष में और कुछ विपक्ष में सिर्फ इसलिये बोल रहे थे चूंकि चीखने से ही चैनल्स की बहस को शायद विचारोत्तेजक और टी आर पी गेनर माना जाने लगा है।बहस का निष्कर्ष भी जैसे पू्र्वनियोजित था कि कोई ऐसी व्यवस्था ज़रूर होनी चाहिये जो 'सोशल मीडिया' के कंटेंट को नियंत्रित कर सके।
मुझे लगता है कि जिस तरह से मीडिया के लोग कहते हैं कि आत्मनियंत्रण ही मीडिया (इलेक्ट्रानिक और प्रिंट) के लिये श्रेष्ठ है वही बात'सोशल मीडिया' पर भी लागू होती है पर क्या इतने उच्च स्तर की नैतिकता है समाज में जो सही अर्थों में 'आत्मनियंत्रण' कर सके।बनिये(वह बनिया अंबानी से लेकर दाउद और नौसिखिया बिलडर से लेकर रूपर्ट मर्डोक तक) के पैसों(विज्ञापन और पेड न्यूज )से चलने वाला तथाकथित मुख्यधारा मीडिया जब शुचिता और मूल्यों की बात करता है तो सुरेन्द्र शर्मा के 'चार लाइना' भी शरमा जाते हैं।इस बहस के एंकर को ही ले लें ।कभी कांसीराम के हाथों पिटे प्रेसक्लब में दहाडे मारकर रो रहे प्रेस की इज्जत और सुरक्षा की गुहार करने वाले आज के ये मीडिया माफिया की सारी नैतिकता मायावती द्वारा आबंटित एक फ्लैट के क्षेत्रफल में कैसे सिमट गयी थी इस बात को मीडिया के पुराने लोग बखूवी जानते हैं पर आज नैतिकता,शुचिता आत्मनियंत्रण की बात करते ये हकलाते भी नहीं
मेरा आशय मात्र इतना कहना है कि बेशक 'सोशल मीडिया'सूचना और आत्मप्रचार का माध्यम है और इसे किसी बडे परिवर्तन का वाहक बनने में समय लगेगा पर इसके उपयोग पर नियंत्रण या दिशा परिवर्तन की कोई भी कोशिशआत्मघाती सिद्ध होगी।सोशल मीडिया विषयक अपनी पुरानी पोस्ट्स में और विभिन्न मंचो पर दिये अपने भाषणों में मैं लगाता इस माध्यम की उपादेयता और नियंत्रण के प्रकारों की चर्चा करता रहा हूं अतः यहां फिर से उस सब को दुहराना नहीं चाहूंगा पर निष्कर्ष रूप में इतना ज़रूर कहना चाहूंगा कि जिस तरह से हर परिवर्तन अच्छा नही होता वैसे ही परिवर्तन का हर माध्यम भी अच्छा नही होता परंतु परिवर्तन नियति है अतः या तो इसे स्वीकर कर लें या परे हो जायें।सिर्फ लाइक्स और कमेंट्स की आशा ,अपेक्षा वाली पोस्ट और व्यक्ति अखबार के चिठ्ठी पत्री कालम में लिखने वालों की तरह अंततः वैसे ही महत्वहीन और अनपढे रह जाते हैं जैसे कि आत्मप्रचार के फोटो और इंटरव्यू शेयर करने वाले (अखबारी विज्ञापन )।हां जिन्हे ये ललक है कि उनकी पोस्ट पे हज़र लाइक और पांच सौ कमेंट हों उन्हें गिव एंड टेक की कवि सम्मेलनीय परंपरा के अनुसार लाइल और कमेंट करने चाहिये और तब भी यदि प्रतयुत्तर ना मिले तो इसी परंपरा से प्रेरणा ले उलाहना,प्रताडना के सभी जायज -नाजायज हथियारों का इस्तेमाल करने से परहेज़ नही करना चाहिये।नवरात्र के इस सप्ताह में सभी पाठकों को अधिकाधिक लाइक्स और कमेंट मिले इसी कामना के साथ-------
 अरविंद पथिक

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