ओछे मंच नहीं




हमको तो लिखना आता है
दिखना रंच नहीं
बस थोडा आशीष चाहिये
ओछे मंच नहीं
अपने निकम्मेपन पर हमको
है पूरा विश्वास 
सिर्फ भरोसा है ईश्वर का
नहीं किसी से आस
मेरी उनकी ठनी हुई है
कोई पंच नहीं
बस थोडा आशीष चाहिये
ओछे मंच नहीं
हमें तोडने को बौने हैं
सारे एक हुये
वही कुचलने हमें चले हैं
जिनके चरण छूये
मन आहत,स्तब्ध-मौन पर
ईर्ष्या रंच नहीं
बस थोडा आशीष चाहिये
ओछे मंच नहीं

लक्षागृहों में आग लगायी
चक्रव्यूह तोडे
षडयंत्री धाराओं के रूख
बहुत बार मोडे
आते हैं पर हमको रूचते
तनिक प्रपंच नहीं
बस थोडा आशीष चाहिये
ओछे मंच नहीं
-------------अरविंद पथिक

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