लखनऊ कांग्रेस में बिस्मिल जी----




वर्ष १९१६ में कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन होना था।लोकमान्य तिलक की लोकप्रियता और राष्ट्रवादी नीतियों से प्रभावित होकर पं० रामप्रसाद बिस्मिल जोकि उन दिनो-आर्य कुमारसभा के बडे संगठक थे अपने साथियों के साथ इस अधिवेशन में भाग लेने पहुंचे--।इतिहास के उस पृष्ठ को वर्ष २००६ में प्रकाशित 'बिस्मिल चरित' में अंकित करने की कोशिश की है।लोकमान्य और पं० रामप्रसाद बिस्मिल दोनो-को इस बहाने स्मरण कर रहा हूं---
कांगरेस का अधिवेशन इस बार लखनऊ में होगा
आयेंगे 'तिलक' चितरंजन प्रमुदित हर युवा मन होगा      
बतलायेंगे कटु शासन से कैसे निपटें निपटायें हम
इस क्रूर बाज के पंजे से कैसे निज़ात अब पायें हम
भारत भर में उत्साह जगा जन-मन-में आशा लहराई
लखनऊ जाके ही देखूं ,सुनूं बिस्मिल मन में इच्छा आई
वे नगर लखनऊ जा पहुंचे,पहुंचे विशाल पंडालो में
बिस्मिल जी ने महसूस किया वे घिरे हैं विकट सवालों में
गरमदली नरमदली बहसें करते गरियाते हैं
किस तरह देश आज़ाद करें वे तय ही नहीं कर पाते हैं
थी हवा गर्म सरगोशी थी,इस बार नया अद्भभुत होगा
किस तरह लडें अंग्रेजों से यह हर हालत में तय होगा
लोकमान्य जी निश्चय ही नूतन पथ हमें दिखायेंगे
लेकिन यह तय है माडरेट फिर से षडयंत्र रचायेंगे
लखनऊ शहर में पग -पग पर अफवाहें ही अफवाहें थीं
लेकिन बिस्मिल के चिंतन में भारत की कटु आहें थीं
हर तरफ तिलक की जयकारें,युवाओं की हुंकारें थीं
गरम दली नरमदली में हो जाती तकरारें थीं
लखनऊ कांग्रेस सभापति बनकर पहुंचे थे मजूमदार
स्वागत से जोश नदारद था छा गया ह्रदय पर विकट भार
मंत्रणा हुई ,कानाफूसी सब माडरेट थे घबराये
लोकमान्य कल पहुंचेगे इस बीच समाचार आये
जनता में फैली खबर ज्यों ही बिजली सी दौड गयी सहसा
शांत मौन उस परिसर का नर,नारी युवा मन हरषा
कानों-कानों फैली ये खबर फिर तोरण द्वार लगे बनने
भारत के महा केसरी के दर्शन को भीड लगी जुटने
चौबीस घंटे थे शेष मगर परिसर में शोर थमता था
उत्साह देखकर जनता का , शासन मन ही मन डरता था
लोकमान्य कल आयेंगे सुनकर के बिस्मिल हरषाये
जैसे निर्दन को अनायास कारूं का खजाना मिल जाये
'वे तिलक जिनकी हुंकारों से अंगरेजी शासन कंपता है'
'लेकर स्वराज हम मानेंगे'सुनकर जो डरता -हंफता है
उनकी वाणी को सुनने का संयोग मिलेगा कानो को
उद्बोधन अद्भुत होगा ही निज-बोध मिलेगा प्राणों को
आहा;क्या सुंदर क्षण होंगे?जब लोकमान्य जी आयेंगे
अपनी गंभीर हुंकारों से शासन को सहज हिलायेंगे
अधिवेशन के गलियारों में छिप-छिप कर बातें होने लगीं
सुनकर के तिलक की जयकारें फिर ओछी घातें होने लगीं
यदि 'तिलक' नगर से गुज़रेंगे माहौल गरम हो जायेगा
दिनकर जब नभ में विचरेगा तारा समूह छिप जायेगा
माडरेट थे परेशान,हैरान बडे थे,व्याकुल थे
किस तरह तिलक का तेज घटे? वे सोच सोच कर आकुल थे
"तय किया न निकलेगा जुलूस व,मोटर ही में ले आयेंगे
सम्मान रहेगा नेता का ,दुविधा से भी बच जायेंगे"
खबर मिली जब बिस्मिल को,संकल्प किया कुछ करना है
चाहे जो करना पडे आज सम्मान तिलक का करना है"

भारत माता के तिलक,तिलक का निश्चय ही स्वागत होगा
युवाओं को आगे बढकर सब द्वेष दंभ हरना होगा
जिसको मेरी बात सुहाती हो वह अपना हाथ खडा कर दे
सम्मान तिलक का करना है मेरे स्वर में निज स्वर भर दे
हम चलेंगे अब स्टेशन को पलकों पे बिठाकर लायेंगे
भारत माता के 'दीप्त तिलक' को निज मस्तक से लगायेंगे
मत करो देर अब शीघ्र चलो बातों की बेला बीत गयी
कुछ करने का क्षण आये हैंनारों की बेला बीत गयी
'स्पेशल' आकर रूकी ज्यों ही कांगरेसी स्वागत को धाये
घेरे में तिलक को लेकर के मोटर के भीतर ले आये
'लें चलेंगे बाहर ही बाहर ,शासन की ऐसी इच्छा है'
बिस्मिल बोले युवक दल से-'मित्रों अब अपनी परीक्षा है'
हुंकार लगायी बिस्मिल ने -" आगे लेटो इस मोटर के
जीवन का अंतिम दिन होगा कुचलेंगे खुद को मोटर से"
सबसे आगे बिस्मिल लेटे,पीछे लेटा युवक समूह
ऊपर से मोटर लो निकाल रो-रो कहता युवक समूह
भावुक हो गये थे लोकमान्य ,मोटर त्यागी बाहर आये
अर्पित करने भावुक प्रणाम बिस्मिल चरणों में झुक धाये
टपके दो आंसू चरणों पर चौंके फिर तिलक प्रसन्न हुये
भेंटे बाहों में भरकर वे युवक जन सारे धन्य हुये
जयकार तिलक की बिस्मिल की गूंजी फिर दशों दिशाओं में
उत्साह देखते बनता था ती भीड जमाचौराहों में
तांगे पे बिठाये गये तिलक जुत गये स्वयं ही बिस्मिल जी
युवक सब मिलकर खींच रहे नेता थे उनके बिस्मिल जी
भारतमाता का लाल धन्य कितना विनम्र कितना भोला
आओ देखें,भावुक मन क्यों बना अग्निधर्मी गोला ?
------------------(बिस्मिल चरित से)


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हिंदी के विकास में विदेशी विद्वानों का योगदान

विभाजन और साम्प्रदायिकता के स्रोत: सर सैय्यद अहमद खान

मंगल पांडे का बलिदान दिवस