दिन-प्रतिदिन ही गिर रहा रूपया और चरित्र


पिछले दिनो रूपये ने डालर के सम्मुख जैसे सरेंडर किया वैसा तो मनमोहन सिंह ने सोनिया जी के आगे भी नही किया।यों तो रूपया आज़ादी के बाद से ही नेताओं के चरित्र की तरह गिरता ही जा रहा है पर शायद पिछले कुछ दिनो से वह नेताओं के चरित्र पर गौर करना ही भूल गया था वरना मधु कोडा,लालू यादव,ए राजा,कलमाडी जैसे खिलाडियों ने बराबर प्रेरित किया था गिरने को पर रूपये ने अपने को शायद नेताओं के चरित्र के बजाय आम आदमी के चरित्र से जोड लिया था सो कमोवेश स्थिर रह।पर यथा राजा तथा प्रजा आखिर आम आदमी को भी सुध आयी अरे हमारा चरित्र स्थिर क्यों?अन्ना और आप के चक्कर में ये तो बस चेंज चेंज चिल्ला रहा है।टोपी पहनाने के युग में टोपी लगा रहा है।फिर क्या आम आदमी ने फटाफट कुछ दर्ज़न बलात्कार कर डाले निर्भया-और आसाराम कांड को देख सुनकर रूपये को यथास्थिति का आभास हुआ ।उसने सहारे के लिये नेताओं की ओर देखा तो वे कहीं नोएडा तो कहीं मुज़फ्फर नगर बनाने में लगे थे।अब रूपया करता तो क्या करता लगा फिसलने और ऐसा फिसला कि उसकी फिसलन पर मोईली की ज़ुबान फिसली बेचारों ने पेट्रोल पंप रात में बंद करने की इच्छा भर जताई कि दिग्गी भी बयानों के पोखर में फिसल गये।रूपये की हालत और हालात पर सुकून की सांस केवल महामहिम ले रहे --शुक्र मना रहे हैं कि वक्त रहते पीछा छूटा वरना चिदंबर कि तरह चिचिया रहे होते—दिग्गी के फिसलते ही मोइली कि घिघी ऐसी बंधी --कि पेट्रोल पंप खुले के खुले रह गये।दरअसल लोग रूपया और चरित्र दोनो को ही गिरने के फायदे समझ नही पा रहे।ये दोनो जब गिरते हैं तो फायदा ही फायद होता है और ओपेन एज मेरे मतलब खुलेपन के युग में जब सब कुछ खोल देना विकास की पहली सीढी है तो गिरने से फायदे ही फायदे हैं ।ये लोग जो शोर मचा रहे हैं कि रूपया गिर दरअसल फंडामेंडलिसट हैं बुर्ज़ुआ हैं।अब रूपया गिरेगा तो स्विस बैंक में जमा डालर रूपये में कनवर्ट होकर इंडिया आयेगा और नतीज़ा इकोनामी उछाल मारेगी ।हमारा सबसे ज़्यादा रूपया है स्विस बैंक में ये तो रामदेव भी मानते हैं और खुली व्यवस्था में तो ऐसे ही होता है--लेके गये थे एक लाते ही हो जायेनगे ग्यारह--है ना कमाल---।खुलेपन का चरित्र के मोर्चे पर तो फायदों की कोई लिंमिट ही नही चरित्र खोलते ही प्रगतिशील हो जाते हैं।सामंतवादी और पुरूषवादी मानसिकता को परे करने का जैसा मौका इस खुलेपन दिया वैसा पहले कभी मिला था क्या--?तालिबानी और मध्ययुगीन सोच से बाहर बसों में कंधे सें कंधा भिडाकर चल रही है महिलायें।खुलेपन ने रेडलाइट ऐरिया खत्म कर रेडलाइट को ही ऐरिया बना दिया पिछले ५-१० शाल में कभी सोचा भी था ऐसी प्रगति के बारे में।हमारी साइमटिफिक तरक्की को मापने का पैमाना भी तय कर दिया इस खुलेपन ने--अब देखो यदि ये खुलापन ना होता तो निर्भया रात के साढे ग्यारह बजे पिक्चर देखकर ब्वाय फ्रेंड के साथ बस कैसे पकडती और वो बस में चढती ही नही तो वो जघन्य कांड ही नहीं होता और
वो कांड ही नहीं होता तो हमारी पुलिस को साइंटिफिक तरीके से जांच करने का मौका कैसे मिलता?दुनिया कैसे जानपाती कि हम कितने एडवांस हो गये हैं अपराध विज्ञान में हमें इसलिये भी इस खुलेपन का शुक्रिया अदा करना चाहिये।शुक्रिया तो हमें आशाराम का भी अदा करना है--।अंबानी और टाटा को नोट बनाने का फार्मूला सीखने के लिये आसाराम की शरण में जाना चाहिये।सुना है लालू यादव के बाद अब आशाराम को हारवर्ड वाले बुला रहे हैं मैनेजमेंट पर भाषण देने।कयी गोरी मेमें आसाराम जी की कुटिया में मंत्र सीखने की इच्छा जता चुकी हैं ।पुलिस भी अपनी तकनीकी दक्षता का प्रयोग बाबा पर कर बहुत से राज जानने को उत्सुक है---।
आने वाला युग संभावना का युग है और हमे इसके स्वागत के लिये तैयार रहना चाहिये क्योंकि रूपये और चरित्र में नीचे गिरने की जो होड लगी है वह हमारे विकास की निशानी है और इस विकास की नींव इतनी गहरी रख दी है हमारे नेताओं ने कि अब इस पर पतन का विकराल महल बनके रहेगा।पिछडेपन से बाहर निकल खुलेपन का स्वागत करिये और धन्यवाद दीजिये अपने कर्णधारों को कि जिन्होने जेल जाना मंज़ूर किया विकास के पहिये को रोकना नही---इसीलिये तो मैं कहता हूं----
नहीं विश्व में एक भी बचा राष्ट्र का मित्र
दिन-प्रतिदिन ही गिर रहा रूपया और चरित्र
 

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