maulvi ahamadullshah

१८५७ के १५० वर्ष पूरे होने पर राष्ट्रीय प्रसारण सेवा,आकाशवाणी ने प्रथम स्वातंत्रय समर के क्रांतिकारियों पर रेडियो रूपक की श्रंखला प्रसारित की।पुवायां ,शाहजहांपुर का होने के कारण मौलवी अहमदउल्लाशाह के बारे में सुन रखा था पर अब सिलसिलेवार पढा।तो आश्चर्य में पड गया----विलियम रसल जोकि 'उस क्रांति के समय 'ब्रिटिश फौज़ ' में था और बाद में 'लंदन टाइम्स ' का संवाददाता बना --उसने लिखा-----इस युद्ध के तीन महान सेनानायक थे भारतीय सेना के---प्रथम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई,दूसरे तात्या टोपे और तीसरा मौलवी अहमदुल्लाशाह -इन तीनों में भी मैं मौलवी को प्रथम स्थान पर रखना चाहूंगा-क्योंकि वह ना तो किसी राजपरिवार में पैदा हुआ था और ना ही उसने कोई विधिवत सैन्य शिक्षा ली थी फिर भी उसकी रणनीतियों ने कई बार अंग्रेज जनरलों को चौंकाया।"
---इन्ही मौलवी अहमदुल्लाशाह के बारे में --विनायाक दामोदर सावरकर ने लिखा----"-------------उस महान सेनानी को इस देश के एक देशद्रोही ने छल से मार दिया,पोवेन(पुवायां)का यह राजा छोटा और मूर्ख तो था ही नराधम था--------।
ऐसे मौलवी अहमदुल्लाशाह के बारे में राष्ट्रिय अभीलेखागार के दस्तावेज खगालते अब तक जानकारी में ना आयी बहुत सी बातों के सत्यापित दस्तावेज मेरे पास संरक्षित हैं--मैं इतिहास का विद्यार्थी नही ना बिकााऊ लेखक जो मेरे काम को कोई प्रतिष्ठित प्रकाशक छापे सरस्वती के साथ जब लक्ष्मी जि भी कृपा करेंगी तो स्वयं ही प्रकाशित कराकर -सत्य के अन्वेषकों को बांटूंगा--।मौलवी अममदुल्लाशाह पर लिखे मेरे रेडियो नाटक को प्रसारण के बाद काफी सराहा गया ।मैने मौलवी पर एक लंबी कविता लिखी--जिसे टुकडों -टुकडों में आपके साथ शेयर करूंगा----

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