आपके बच्चों को पालती आपकी पत्नी,आपके हाथ में पानी का गिलास थमाती बेटी आप के इंतजार में टकटकी लगाये राह तकती मां और विश्वास के साथ अपना सब कुच समर्पित प्रेयसी क्या आपसे थोडा और संवेदनशील और सह्रदय होने की भी अपेक्षा ना रखे।
तमाम नारी विमर्श के ,महिला आयोग और नारीवादी संगठनों के हो हल्ले के बावज़ूद नारी के विरूद्ध होने वाले अपराधों में -अत्याचारों में निरंतर वृद्धि हो रही है।ना तो दहेज और भ्रूण हत्या पर रोक लग सकी है और ना ही नारी अस्मिता पर हो रहे हमले थमे हैं।स्वतंत्रता की कीमत नारी ने दोहरी ज़िम्मेदारी ओढ कर चुकायी है।तमाम पूर्वाग्रहों को परे रख दें तो आज नारी ने चाहे अनचाहे अपने ऊपर इतना दबाव ले लिया है कि संपूर्ण अस्तित्व चरमरा कर ढह जाने को है ।यदि बात कार्यशील महिलाओं की की जाये तो पहले की तरह ही उसे पुरूषों से पहले उठना और बाद में सोना है।घर का खाना ,बरतन ,कपडे पहले की तरह उस की ज़िम्मेदारी हैं ।कार्यालयीन दबावों और कामों को वह बोझ जो केवल पुरूष की ज़िम्मेदारी था वह आत्मनिर्भरता के चक्कर में ओढ कर नारी चकरघिन्नी बनकर रह गयी है।ये ठीक है कि इस आत्मनिर्भरता ने उसआत्मविश्वास और संपन्न बनाया है पर उसकी कीमत नारी ने अपने स्वास्थय और शांति से चुकायी है। पुरूष की मानसिकता भी बदली है पर सारा समाज उस तरह से नही बदला वह चाहे हापुड के निकट हुयी घटना हो या नरेंद्र मोदी का वक्तव्य ।पंचायत की नज़र ...